भारत देश की एकता और अखण्डता पर आज प्रश्न चिन्ह खड़े होना निराशाजनक ही नहीं अपितु बड़ी चिन्ता का विषय है। बात देश के वर्तमान हालात की है। चारों ओर फैल रहा अराजकता का माहौल भारत के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। दिल्ली को दहलाने वाले दहशतगर्त देश की फिजां में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। आज ऐसे लोगों के लिए देश से बड़ा उनका अपना निजी स्वार्थ बन गया है। इन हालातों में देश की जनता को सब्र से काम लेने की जरूरत है। किसी के बहकावे में आकर गलत निर्णय लेने से बचने की आवश्यकता है। शाहीनबाग में जो कुछ भी चल रहा है, निश्चित रूप से देश को कमजोर करने की बड़ी साजिश है। अब प्रश्न ये उठता है कि इस आन्दोलन को चलाने के पीछे किसकी खुरापात है। कौन है, जो देश में रहकर बाहरी ताकतों को मजबूत करने की हिमाकत कर रहा है।
अपनी बात रखने का अधिकार सभी को है, लेकिन बात सामाजिक होनी चाहिए, देशहित में होनी चाहिए, निजी स्वार्थ के लिए देश को जलाया नहीं जा सकता। अनर्गल भाषणबाजी और लोगों को बेबजह भड़काने की गुस्ताखी अशोभनीय ही नहीं बल्कि देशद्रोह की श्रेणी में आता है। विरोध प्रदर्शन के और भी बहुत तरीके हैं। लोगों को परेशान कर आखिर क्या जताया जा रहा है। देश की सुरक्षा व्यवस्था को चकनाचूर कर उल्टे सुरक्षाकर्मियों को ही कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। केन्द्र की भाजपा सरकार और दिल्ली की आम आदमी सरकार आखिर कर क्या रही हैं। ऐसी फिरकापरस्त ताकतों को बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखाया जा रहा। जब इतने बड़े-बड़े निर्णय बड़ी आसानी से ले लिए, तो फिर अब एक ठोस कदम उठाने में डर किस बात का है?
नोटबंदी, जीएसटी, कश्मीर, सीएए, एनआरसी जैसे निर्णय लेने में प्रधानमंत्री ने जरा भी बिलम्ब नहीं किया फिर दिल्ली की अराजकता पर खामोशी से प्रश्न उठना स्वाभाविक है। केन्द्र सरकार कुछ करेगी नहीं, आप सरकार पूर्ण राज्य का राग अलापने के सिवाय आगे नहीं बढ़ेगी, तो क्या दिल्ली में आम आदमी यूं ही अपनी जान से हाथ धोता रहेगा। सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में कानून बनाने से पीछे क्यों है? आज ये दिल्ली में हो रहा है, कल पूरे देश में होगा, फिर इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? इंतजार की ये घड़िया देश के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। देश की राजनैतिक पार्टियों और राजनेताओं पर बड़ा तरस आता है, कि देश की शांति को भंग करने में सभी निम्न स्तर की राजनीति कर रहे हैं। झेल रहा है आम आदमी।
देश की राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं से हाथ जोड़कर निवेदन है, इस प्राणों से प्यारे भारत को शाहीनबाग मत बनाओ। अपने राजनीतिक स्तर को सुधार देशहित में सोचो, अन्यथा इस घुन से कोई नहीं बच पाएगा। सत्ता, कुर्सी और स्वार्थ की राजनीति से बाहर आकर देश के विषय में गम्भीरता से सोचने की जरूरत है। माहौल को सुधारने के लिए एकमत से समस्या का समाधान ही सबका लक्ष्य होना चाहिए है। इस समय देश बड़ी नाजुक स्थित से गुजर रहा है। एक दूसरे पर छीटाकसी का वक्त नहीं है। आज हारे तो कल हार देंगे। इस बात को ध्यान में रखते हुए कुछ ठोस कदम और निर्णय लेने की महती आवश्यकता है। देश की राजधानी ही जब सुरक्षित नहीं है, तो समूचे देश को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है। बात बड़ी छोटी सी है। लेकिन उस पर अमल करना बहुत जरूरी है।
देशहित में लागू किए गए सीएए और एनआरसी जो इस देश का निवासी है, उसे डर किस बात का है। चाहे वो हिन्दू हो, मुस्लिम हो, सिख या ईसाई हो। जो इस देश का है, वो हमेशा रहेगा। ये कानून तो उन बाहरी ताकतों के लिए है, जो देश के न होकर देश की सुख-सुविधाओं का लाभ उठाते हैं और देश की शांति भंगकर अराजकता का माहौल पैदा करते हैं। ऐसे नापाक लोगों को देश से बाहर निकाल फैंकने में आखिर हर्ज क्या है? जो लोग ऐसे लोगों को साथ दे रहे हैं, वो देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं। वोट की राजनीति करने वाले देशद्रोही खुद को देशप्रेमी बताने से या हल्ला मचाने से भारतीय नहीं हो जाएंगे। देश की जनता को ये समझ लेना चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत? भारत का नमक खाकर फिरकापरस्त लोगों का साथ देने वाले ज्यादा दिन नहीं बचेंगे। हम सब भारतीयों को केवल देशहित में सोचने, समझने और अमल करने की जरूरत है। कोई भी धर्म हिंसा नहीं सिखाता। अमन चैन और शांति का पाठ प्रत्येक मजहब में सिखाया जाता है। इसलिए जो लोग अराजकता फैला रहे हैं, उनका कोई धर्म नहीं है। वो लोग केवल अधर्म के रास्ते पर चलकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। जिसे हम भारतीयों को भलीभांति समझ लेना होगा। हमें एकता, अखण्डता, देशप्रेम की भावनाओं से कार्य कर आगे बढ़ना होगा। अन्यथा भारत को कमजोर करने वाली ताकतें निरन्तर किसी न किसी बहाने से यहां उपद्रव कर देश को खोखला करती रहेंगी।
अपनी बात रखने का अधिकार सभी को है, लेकिन बात सामाजिक होनी चाहिए, देशहित में होनी चाहिए, निजी स्वार्थ के लिए देश को जलाया नहीं जा सकता। अनर्गल भाषणबाजी और लोगों को बेबजह भड़काने की गुस्ताखी अशोभनीय ही नहीं बल्कि देशद्रोह की श्रेणी में आता है। विरोध प्रदर्शन के और भी बहुत तरीके हैं। लोगों को परेशान कर आखिर क्या जताया जा रहा है। देश की सुरक्षा व्यवस्था को चकनाचूर कर उल्टे सुरक्षाकर्मियों को ही कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। केन्द्र की भाजपा सरकार और दिल्ली की आम आदमी सरकार आखिर कर क्या रही हैं। ऐसी फिरकापरस्त ताकतों को बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखाया जा रहा। जब इतने बड़े-बड़े निर्णय बड़ी आसानी से ले लिए, तो फिर अब एक ठोस कदम उठाने में डर किस बात का है?
नोटबंदी, जीएसटी, कश्मीर, सीएए, एनआरसी जैसे निर्णय लेने में प्रधानमंत्री ने जरा भी बिलम्ब नहीं किया फिर दिल्ली की अराजकता पर खामोशी से प्रश्न उठना स्वाभाविक है। केन्द्र सरकार कुछ करेगी नहीं, आप सरकार पूर्ण राज्य का राग अलापने के सिवाय आगे नहीं बढ़ेगी, तो क्या दिल्ली में आम आदमी यूं ही अपनी जान से हाथ धोता रहेगा। सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में कानून बनाने से पीछे क्यों है? आज ये दिल्ली में हो रहा है, कल पूरे देश में होगा, फिर इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? इंतजार की ये घड़िया देश के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। देश की राजनैतिक पार्टियों और राजनेताओं पर बड़ा तरस आता है, कि देश की शांति को भंग करने में सभी निम्न स्तर की राजनीति कर रहे हैं। झेल रहा है आम आदमी।
देश की राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं से हाथ जोड़कर निवेदन है, इस प्राणों से प्यारे भारत को शाहीनबाग मत बनाओ। अपने राजनीतिक स्तर को सुधार देशहित में सोचो, अन्यथा इस घुन से कोई नहीं बच पाएगा। सत्ता, कुर्सी और स्वार्थ की राजनीति से बाहर आकर देश के विषय में गम्भीरता से सोचने की जरूरत है। माहौल को सुधारने के लिए एकमत से समस्या का समाधान ही सबका लक्ष्य होना चाहिए है। इस समय देश बड़ी नाजुक स्थित से गुजर रहा है। एक दूसरे पर छीटाकसी का वक्त नहीं है। आज हारे तो कल हार देंगे। इस बात को ध्यान में रखते हुए कुछ ठोस कदम और निर्णय लेने की महती आवश्यकता है। देश की राजधानी ही जब सुरक्षित नहीं है, तो समूचे देश को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है। बात बड़ी छोटी सी है। लेकिन उस पर अमल करना बहुत जरूरी है।
देशहित में लागू किए गए सीएए और एनआरसी जो इस देश का निवासी है, उसे डर किस बात का है। चाहे वो हिन्दू हो, मुस्लिम हो, सिख या ईसाई हो। जो इस देश का है, वो हमेशा रहेगा। ये कानून तो उन बाहरी ताकतों के लिए है, जो देश के न होकर देश की सुख-सुविधाओं का लाभ उठाते हैं और देश की शांति भंगकर अराजकता का माहौल पैदा करते हैं। ऐसे नापाक लोगों को देश से बाहर निकाल फैंकने में आखिर हर्ज क्या है? जो लोग ऐसे लोगों को साथ दे रहे हैं, वो देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं। वोट की राजनीति करने वाले देशद्रोही खुद को देशप्रेमी बताने से या हल्ला मचाने से भारतीय नहीं हो जाएंगे। देश की जनता को ये समझ लेना चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत? भारत का नमक खाकर फिरकापरस्त लोगों का साथ देने वाले ज्यादा दिन नहीं बचेंगे। हम सब भारतीयों को केवल देशहित में सोचने, समझने और अमल करने की जरूरत है। कोई भी धर्म हिंसा नहीं सिखाता। अमन चैन और शांति का पाठ प्रत्येक मजहब में सिखाया जाता है। इसलिए जो लोग अराजकता फैला रहे हैं, उनका कोई धर्म नहीं है। वो लोग केवल अधर्म के रास्ते पर चलकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। जिसे हम भारतीयों को भलीभांति समझ लेना होगा। हमें एकता, अखण्डता, देशप्रेम की भावनाओं से कार्य कर आगे बढ़ना होगा। अन्यथा भारत को कमजोर करने वाली ताकतें निरन्तर किसी न किसी बहाने से यहां उपद्रव कर देश को खोखला करती रहेंगी।