Thursday, February 27, 2020

मजहब नहीं सिखाता....?

भारत देश की एकता और अखण्डता पर आज प्रश्न चिन्ह खड़े होना निराशाजनक ही नहीं अपितु बड़ी चिन्ता का विषय है। बात देश के वर्तमान हालात की है। चारों ओर फैल रहा अराजकता का माहौल भारत के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। दिल्ली को दहलाने वाले दहशतगर्त देश की फिजां में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। आज ऐसे लोगों के लिए देश से बड़ा उनका अपना निजी स्वार्थ बन गया है। इन हालातों में देश की जनता को सब्र से काम लेने की जरूरत है। किसी के बहकावे में आकर गलत निर्णय लेने से बचने की आवश्यकता है। शाहीनबाग में जो कुछ भी चल रहा है, निश्चित रूप से देश को कमजोर करने की बड़ी साजिश है। अब प्रश्न ये उठता है कि इस आन्दोलन को चलाने के पीछे किसकी खुरापात है। कौन है, जो देश में रहकर बाहरी ताकतों को मजबूत करने की हिमाकत कर रहा है।
अपनी बात रखने का अधिकार सभी को है, लेकिन बात सामाजिक होनी चाहिए, देशहित में होनी चाहिए, निजी स्वार्थ के लिए देश को जलाया नहीं जा सकता। अनर्गल भाषणबाजी और लोगों को बेबजह भड़काने की गुस्ताखी अशोभनीय ही नहीं बल्कि देशद्रोह की श्रेणी में आता है। विरोध प्रदर्शन के और भी बहुत तरीके हैं। लोगों को परेशान कर आखिर क्या जताया जा रहा है। देश की सुरक्षा व्यवस्था को चकनाचूर कर उल्टे सुरक्षाकर्मियों को ही कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। केन्द्र की भाजपा सरकार और दिल्ली की आम आदमी सरकार आखिर कर क्या रही हैं। ऐसी फिरकापरस्त ताकतों को बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखाया जा रहा। जब इतने बड़े-बड़े निर्णय बड़ी आसानी से ले लिए, तो फिर अब एक ठोस कदम उठाने में डर किस बात का है?
नोटबंदी, जीएसटी, कश्मीर, सीएए, एनआरसी जैसे निर्णय लेने में प्रधानमंत्री ने जरा भी बिलम्ब नहीं किया फिर दिल्ली की अराजकता पर खामोशी से प्रश्न उठना स्वाभाविक है। केन्द्र सरकार कुछ करेगी नहीं, आप सरकार पूर्ण राज्य का राग अलापने के सिवाय आगे नहीं बढ़ेगी, तो क्या दिल्ली में आम आदमी यूं ही अपनी जान से हाथ धोता रहेगा। सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में कानून बनाने से पीछे क्यों है? आज ये दिल्ली में हो रहा है, कल पूरे देश में होगा, फिर इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? इंतजार की ये घड़िया देश के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। देश की राजनैतिक पार्टियों और राजनेताओं पर बड़ा तरस आता है, कि देश की शांति को भंग करने में सभी निम्न स्तर की राजनीति कर रहे हैं। झेल रहा है आम आदमी।
देश की राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं से हाथ जोड़कर निवेदन है, इस प्राणों से प्यारे भारत को शाहीनबाग मत बनाओ। अपने राजनीतिक स्तर को सुधार देशहित में सोचो, अन्यथा इस घुन से कोई नहीं बच पाएगा। सत्ता, कुर्सी और स्वार्थ की राजनीति से बाहर आकर देश के विषय में गम्भीरता से सोचने की जरूरत है। माहौल को सुधारने के लिए एकमत से समस्या का समाधान ही सबका लक्ष्य होना चाहिए है। इस समय देश बड़ी नाजुक स्थित से गुजर रहा है। एक दूसरे पर छीटाकसी का वक्त नहीं है। आज हारे तो कल हार देंगे। इस बात को ध्यान में रखते हुए कुछ ठोस कदम और निर्णय लेने की महती आवश्यकता है। देश की राजधानी ही जब सुरक्षित नहीं है, तो समूचे देश को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है। बात बड़ी छोटी सी है। लेकिन उस पर अमल करना बहुत जरूरी है।
देशहित में लागू किए गए सीएए और एनआरसी जो इस देश का निवासी है, उसे डर किस बात का है। चाहे वो हिन्दू हो, मुस्लिम हो, सिख या ईसाई हो। जो इस देश का है, वो हमेशा रहेगा। ये कानून तो उन बाहरी ताकतों के लिए है, जो देश के न होकर देश की सुख-सुविधाओं का लाभ उठाते हैं और देश की शांति भंगकर अराजकता का माहौल पैदा करते हैं। ऐसे नापाक लोगों को देश से बाहर निकाल फैंकने में आखिर हर्ज क्या है? जो लोग ऐसे लोगों को साथ दे रहे हैं, वो देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं। वोट की राजनीति करने वाले देशद्रोही खुद को देशप्रेमी बताने से या हल्ला मचाने से भारतीय नहीं हो जाएंगे। देश की जनता को ये समझ लेना चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत? भारत का नमक खाकर फिरकापरस्त लोगों का साथ देने वाले ज्यादा दिन नहीं बचेंगे। हम सब भारतीयों को केवल देशहित में सोचने, समझने और अमल करने की जरूरत है। कोई भी धर्म हिंसा नहीं सिखाता। अमन चैन और शांति का पाठ प्रत्येक मजहब में सिखाया जाता है। इसलिए जो लोग अराजकता फैला रहे हैं, उनका कोई धर्म नहीं है। वो लोग केवल अधर्म के रास्ते पर चलकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। जिसे हम भारतीयों को भलीभांति समझ लेना होगा। हमें एकता, अखण्डता, देशप्रेम की भावनाओं से कार्य कर आगे बढ़ना होगा। अन्यथा भारत को कमजोर करने वाली ताकतें निरन्तर किसी न किसी बहाने से यहां उपद्रव कर देश को खोखला करती रहेंगी।

Thursday, January 23, 2020

नरेन्द्र मोदी सर्वशक्तिमान

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लोहा इस वक्त समूचा विश्व मान रहा है। राजनीतिक दृश्टिकोण से ही नहीं अपितु उनके आध्यात्मिक सहज और सरल जीवन, व्यक्तित्व, कृतित्व, व्यवहार, दार्शनिक शक्ति और ऊर्जा से आज सभी कायल हैं। हर क्षेत्र में प्रखर स्थायित्व उनकी सफलता का स्रोत है। गुजरात से दिल्ली और दुनिया का सफर उन्होंने दृण इच्छा शक्ति से हासिल किया है। हिन्दुस्तान की बागडोर सम्हालने के साथ ही उनके अंदर देशभक्ति के अथाह सागर ने सम्पूर्ण विश्व को भारत की अहमियत का अहसास कराया है। उनके इरादे और हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्हें कोई हिला नहीं सकता। कड़े से कडे़ फैसले और वो भी देश और देश की जनता के हित में लेना उनकी छवि को और ज्यादा साफ-सुथरी और निर्मल बनाता है। अपने कर्तव्य पथ पर निरंतर आगे बढ़ते हुए उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। देश की जनता के दर्द को आत्मसात करते हुए उस दर्द का निवारण तलाशा है। देश को सुखी, समृद्ध और विकसित करने की दिशा लिए कठिन निर्णय का देश की देश जनता ने सहर्स स्वीकार किया है।
आध्यात्मिक सोच के साथ दूसरों के लिए जीने वाले नरेन्द्र मोदी ने कभी अपने विषय में नहीं सोचा। जब वो जनता से रूबरू होते हैं, तो ऐसा लगता है कि कोई अपना अपनों का दर्द बांट रहा है। सहज और आत्मीय भाव से हर किसी को अपना बनाने की कला उनमें कूट-कूटकर भरी है। किसी भी क्षेत्र में अपनी दूरदर्शी सोच के माध्यम से हर किसी की शंका का समाधान करना उनके बांए हाथ का खेल है। छात्र हों, राजनेता हों, वैज्ञानिक हों या फिर देश के सुरक्षा प्रहरी कर किसी को ज्ञान बांटने वाले मोदी आज सभी के प्रिय बन गए हैं। शायद किसी नहीं सोचा था कि भारत को ऐसा यशस्वी प्रधानमंत्री भी मिलेगा। जिस पर सम्पूर्ण विश्व गर्व करेगा। नरेन्द्र मोदी ने जिस प्रकार भारत के वर्चस्व को विश्व पटल पर स्थापित किया है, आज से पहले शायद किसी ने किया होगा। विश्व गुरू की राह पर बढ़ते हिन्दुस्तान के कदमों को अब रोक पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
अपने आपको महाशक्ति कहने वाले देशों ने भी नरेन्द्र मोदी की मिशाल देना शुरू कर दिया है। नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राॅयल, जीएसटी और सीएए जैसे कड़े निर्णय लेने वाले मोदी ने दुनिया को दिखा दिया है और सिखा भी दिया है कि आखिर देश कैसे चलाया जाता है और लोगों को कैसे अपना बनाया जाता है। दुनिया के दिल में बस चुके मोदी की लोकप्रियता से पाकिस्तान, चाइना और बड़े-बड़े मुल्क आश्चर्यचकित हैं। मोदी की कूटनीति ने न सिर्फ सभी को सोचने पर बिबश कर दिया है, बल्कि अब भारत की तरफ गलत नजर रखने की हिमाकत भी करना उन्होंने छोड़ दिया है। पाकिस्तान को घर में घुसकर मारने की ताकत रखने वाले मोदी के इरादे कोइ्र्र भांप नहीं सकता। हर किसी को बेहतर से बेहतर सीख देने वाले मोदी दुनिया को इंसानियत का पाठ पढ़ा रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, चाइना, रूस, इजरायल के अलावा मुस्लिम देश भी मोदी की तारीफ करते नहीं थकते। मोदी को सम्मानित करना आज हर देश अपना सौभग्य समझता है।
दुनिया में सर उठाकर आज भारत का हर नागरिक स्वछंदता से जा सकता है। जीने को तो सभी अपने लिए जीते हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी केवल दूसरों के लिए जीने की कला में माहिर हैं। कहते हैं सिक्के के दो पहलू होते हैं। ठीक इसी प्रकार नरेन्द्र मोदी की बड़ती लोकप्रियता और कामयाबी कुछ मुल्कों और राजनेताओं को हजम नहीं हो रही है। यही बजह है कि मोदी के खिलाफ आए दिन बगावत और षड्यंत्र के बीज बोए जा रहे हैं। विदेश ही नहीं अपितु अपने देश में देश विरोधी ताकतें यशस्वी प्रधानमंत्री के इरादों को कमजोर बनाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उन्हें हर बार मुंह की खानी पड़ रही है। देश के लिए जीने वाले और हर वक्त देशवासियों के विषय में सोचने वाले सच्चे, निडर और निश्छल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने विरोधियों को भी अपनाने से गुरेज नहीं करते। उनकी नजर में राष्ट्र ही सर्वोपरि है। ऐसे उदयीमान और यशस्वी और देशभक्त प्रधानमंत्री को भला कौन नहीं चाहेगा। अगर कोई नहीं चाहता, जो वो देश के विषय में क्या चाहेगा?
सर्वशक्तिमान की संज्ञा से अगर मोदी को नवाजा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। सबको साथ लेकर चलने वाले और शांति की स्थापना करने वाले मोदी के लिए तमाम देश आज आंखें फैलाए स्वागत करने के लिए रास्ता जोह रहे हैं। भारतवासियों को भी अपने महानायक के लिए कुछ बेहतर करने और त्यागने की जरूरत है ताकि आप भी सच्चे देशभक्त बनकर एक नेक कार्य के साक्षी बन सकें। जब देश की खातिर नरेन्द्र मोदी अकेले चल पड़े हैं, तो ये हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम भी उनका हर कीमत पर साथ दें। ताकि वो इस पावन-पवित्र भारत देश को विश्व पटल पर पुनः विश्व गुरू का तमगा दिला सकें। आओ हम अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अनुसरण करते हुए देशभक्ति का परिचय दें। जय हिन्द!

Wednesday, January 15, 2020

Freelancer: मन करता है...

Freelancer: मन करता है...: मेरा भी मन करता है कि मेरे पास अपार धन-दौलत हो, बड़ा सा बंगला हो, लग्जरी गाड़ी हो और लोग मेरी वाहवाही करें। लेकिन क्या ये बाकई सम्भव हो सकता ...

मन करता है...

मेरा भी मन करता है कि मेरे पास अपार धन-दौलत हो, बड़ा सा बंगला हो, लग्जरी गाड़ी हो और लोग मेरी वाहवाही करें। लेकिन क्या ये बाकई सम्भव हो सकता है। वर्तमान में ये सम्भव हो भी सकता है और नहीं भी। होने की सम्भावना केवल काली कमाई ही हो सकती है और वहीं न होने की उम्मीद मेहनत-मजदूरी, ईमानदारी और सच्चाई। जिसके चलते ये सारी सुविधाएं प्राप्त कर पाना मुश्किल है। काली कमाई से रुतबा और शौहरत तो हासिल की जा सकती है, लेकिन संतोष, आत्मिक अनुभव और जीवन जीने की कला कभी नहीं मिल सकती।
          अब मैं सोचता हॅू कि आखिर, मैंने मेहनत और ईमानदारी से जीवन जीकर क्या पाया? न तो मैं अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दे पाया और न अमीरों जैसी सुख-सुविधा। आखिर, मेरे अपनों का कुसूर क्या था, जिससे मैंने उन्हें बंचित रखा? उनको बेहतर जीवन यापन कराना और उच्च शिक्षा दिलाकर बड़ा आदमी बनाना भी तो मेरा ही कर्तव्य बनता था, तो क्या मैंने अपना कर्तव्य सही तरीके से नहीं निभाया? ये आत्ममंथन मेरे ह्दय में निरंतर उथल-पुथल मचाता रहता है और मैं ये निर्णय नहीं कर पाता हूं कि आखिर, मैंने सही किया या गलत।
अब मैं अपनी मेहनत, सच्चाई और ईमानदारी की कमाई और अमीरों की छल-कपट, मिलावट, सूदखोरी, घूसखोरी, बेईमानी, शोषण, अत्याचार, लूट-खसोट और काली कमाई का तुलनात्मक अध्ययन करता हूं। जहां मुझे उनकी और उनके बच्चों की जिन्दगी दूर से ऐशो आराम और सर्व सुविधाओं से सम्पन्न दिखाई देती है। वहीं मेरी और मेरे परिवार की जिन्दगी दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज और आंसुओं से भरी है। ये एक ऐसा सच है, जिसे आज का इंसान भलीभांति स्वीकार करने पर मजबूर है। लेकिन इसकी असल तस्वीर हर कोई नहीं देख पाता।
          जब मैंने इस तस्वीर के करीब जाकर देखा तो मेरे पैरों तले से जमींन ही खिसक गई। सच वो नहीं, जो दिखाई दे रहा था। सच तो वो था, जिसे आत्मिक तौर से मैंने अनुभव किया। मैंने देखा जो लोग धन-दौलत और शौहरत भरी अहंकारमयी जिन्दगी जी रहे हैं, उनके अपने और बच्चों के दिखावे महज बनावटी हैं। उनके जीवन में एक खालीपन और आत्मिक लगाव शायद मृत हो चुका है। दौलत के नशे ने उनके शरीर में अहंकार, नफरत, अकेलापन और अमानवीय कारकों को कूट-कूटकर भर दिया है, जहां उनके ह्दय में स्वयं के अलावा और किसी के लिए न कोई स्थान है और न किसी के लिए सम्मान ही। यही बजह है कि दौलतमंद अंत में केवल अकेला ही खड़ा है, उसके अपने रिश्ते-नाते उसका साथ छोड़ चुके हैं, क्योंकि उन्हें केवल दौलत से प्रेम है। इस तस्वीर को देखकर मेरे कदम अनायास ही पीछे लौट पड़े।
          इसके विपरीत मैंने अपने कर्तव्यनिष्ठ और दुखित जीवन की तस्वीर को करीब से देखने की हिम्मत जुटाई, जिसे देखकर मेरी आंखों से आंसू बह निकले और मैंने अपना अभावमय जीवन दौलतमंद लोगों से कहीं बेहतर और उच्च अनुभव किया। इसका कारण केवल मेरा परिवार ही था, जो इस हालात में भी मेरे साथ खड़ा था। भोजन की कम उपलब्धता पर भी मेरे बच्चों ने भूखे रहकर दो-दो टूंक बांटकर खाया, दुख और सुख इस घड़ी को मिलकर सहन किया। अपने दुख को भूलकर दूसरों के दुख में शामिल हुए और कभी मुझे इस बात का अहसास नहीं होने दिया, कि वो इस अभावमय जीवन में दुखी हैं, ताकि कहीं मैं उनके दुख से दुखी न हो जाऊं। आज मैं समझ गया कि मैंने अपने बच्चों को संस्कारों की दौलत दी है, ईमानदारी और सच्चाई का रास्ता दिखाया है, जिसके पथपर चलकर वो निश्चित रूप से एक बेहतर इंसान बनेंगे। शायद आज मुझसे ज्यादा दौलतमंद कोई नहीं, जिसके साथ उसके रिश्तों की डोर बंधी है। 

Sunday, January 12, 2020

आत्मा से आत्मा का मिलन ही सात्विक प्रेम

हमारे शरीर का सूक्ष्म तत्व आत्मा में निहित है। जब आत्मा शरीर को छोड़ देती है, तो जीव मृत अवस्था को प्राप्त हो जाता है। अब बात आती है आत्मा के स्पन्दन की। हमारे शरीर में आत्मा की क्रिया और प्रतिक्रिया किस प्रकार हमारे जीवन को प्रभावित करती है। इस विषय को भलीभांति जान लेना अति आवश्यक है। बात भारतीय परिवेश की करें, तो यहां आत्मा का महत्व कुछ ज्यादा ही है। हमारे रिश्ते, नाते, सम्बन्ध, परिवार, समाज और देश भावनात्मक आत्मीय मिलन से ओत प्रोत हैं। इनमें इतनी जटिलता का प्रेम है, जिसे कोई किसी भी कीमत पर अलग नहीं कर सकता। हमारे रिश्तों, नातों और सम्बन्धों की डोर ही है, जो हमें परिवार, समाज और देशभक्ति से जोड़े हुए है। अन्यथा ये भारत भूमि इतने अत्याचार सहन करने के बाद कब की विखण्डित हो चुकी होती। प्रेम की पराकाष्ठा ने मां भारती के ह्दय स्थल को हमेशा सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर गौरवान्वित किया है।
भारत की धरा पर न जाने कितनी भाषाएं, कितने धर्म और कितनी जाति निवास करती हैं, लेकिन सबकी आत्मा में भारत माता की आत्मीय छवि विराजमान है। हर कोई अपनी मातृभूमि पर हंसते-हंसते जान देने को तैयार है। ये कोई आश्चर्य नहीं और न कोई दिखावा है। ये तो केवल इस देश की संस्कृति का मूल मंत्र है, जो यहां निवास करने वाले प्रत्येक जीव जगत की आत्मा में बसता है। देश की आजादी और उससे पहले न जाने कितने देशभक्त मातृभूमि की खातिर देश पर कुर्बान हो गए और ये सिलसिला आज भी लगातार जारी है। हमारी आत्मा इस देश की मिट्टी में बसती है। इस देश पर कोई आंच न आने पाए इसलिए हम अपना सर हथेली पर लेकर चलते हैं।
आत्मा से आत्मा के इस मिलन पर मुगलों ने और अंग्रेजों न जाने कितने अत्याचार किए और इस पावन भूमि को तहस-नहस करने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, लेकिन इस धरा से निकलते प्रेम नाद की शक्ति के आगे, मुगल और गौरे औधे मुंह जा गिरे, ये है हमारे आत्मीय प्रेम की महाशक्ति। भारत की इस पावन धरा के अमर प्रेम को कोई भी ताकत मिला नहीं सकती। बल्कि ये प्रेम अनंत और अनंत तक अमर रहेगा। आदिकाल से लेकर वर्तमान तक के प्रेममयी इस सफर को बनाने वाले हमारे महापुरुषों की तपस्या व्यर्थ नहीं जा सकती। प्रेम, त्याग और भक्ति की प्रतिमूर्ति भारत देश हमेशा सर्वोपरि था और हमेशा पूज्यनीय ही रहेगा। केवल जरूरत है इस सात्विक प्रेम को आत्मसात करने की और जन-जन के ह्दय में आत्मीय प्रेम जगाने की, ताकि हम अपने पूर्वजों के सपने को साकार कर सकें। ये हमारा कर्तव्य है आओ इस आत्मीय प्रेम का अलख जगाकर विश्व विजय का आह्वान करें। जय हिन्द!

Friday, January 10, 2020

प्रेम ब्रह्मास्त्र है

प्रेम दुनिया का सबसे सुखद और संवेदनशील सम्बन्ध है, जिसके माध्यम से अद्भुत से अद्भुत कार्य आसानी से सम्पन्न किए जा सकते हैं। जहां सारे अस्त्र और शस्त्र विफल हो जाएं वहां प्रेम से विजय सहज ही हासिल की जा सकती है। अब सवाल ये उठता है कि, आखिर प्रेम का स्वरूप क्या है? प्रेम की परिभाषा क्या है? प्रेम किस प्रकार किया जा सकता है और प्रेम करने के लिए किस वस्तु की आवश्यकता है? जिज्ञासाएं बहुत हैं, लेकिन सबका समाधान एक मात्र प्रेम ही है। आइए प्रेम के इस गूढ़ रहस्य की गुत्थी को हम और आप मिलकर सुलझाते हैं।
प्रेम प्रकृति का वो निःशुल्क वरदान है, जो प्रत्येक जीव जगत के ह्दय में विद्यमान है। जरूरत है उसे पहचानने और सही तरीके से क्रियान्वयन करने की। सम्पूर्ण सृष्टि में निवास करने वाली जीवात्मा ही प्रेम का स्वाद अनुभव कर सकती है और प्रेम कर सकती है। उदाहरण स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण और राधा का सात्विक प्रेम जो आज भी बृजभूमि के कण-कण विद्यमान है। ऐसे प्रेम की परिकल्पना कर पाना मानव के बस में तो नहीं, लेकिन उसके समक्ष प्रयास कर मानव जीवन को सफल बनाया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति, जीव और जगत से आत्मिक लगाव रखते हुए उनके सुख-दुख में समाहित हो जाना ही प्रेम का पहला मूलमंत्र है। जब हमारा ह्दय दूसरों की पीड़ा को अनुभव करने लगे और अनायास दूसरों के सुख का अनुभव अपने ह्दय में जागृत होने लगे, तो समझो प्रेम की प्रगाढ़ता शिखर की ओर प्रवाहित हो रही है।
जो अपना है, वो सबका है और जो सबका है, वो अपना है। इस भाव के प्रादुर्भाव का उदय मनुष्य को महानता की ओर ले जा सकता है। प्रेम के इस माधुर्य को आत्मसात करने वाले मनुष्य को अंगारों से गुजरना पड़ता है। प्रेम की राह कठिन जरूर है, लेकिन उसका लक्ष्य परम् ब्रह्म के समक्ष है। जिसने प्रेम की पराकष्ठा को पार कर लिया, समझो उसने सम्पूर्ण सृष्टि का आनंद प्राप्त कर लिया। विश्वविजय का ये प्रेममयी अश्वमेघ यज्ञ जीतने वाले महान पुरुष केवल भारत की धरा पर ही प्रगट हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे। प्रेम सर्वदा अमर है, इसका कभी अन्त नहीं हो सकता। स्वार्थ से परे हटकर निःस्वार्थ का भाव ही हमें महान बनाता है।
प्रेम की पराशक्ति का आभास जिसने भी किया, उसने सम्पूर्ण जगत को अपना बना लिया। न धर्म से, न जाति से, न वर्ग से, न वर्ण से और न किसी जीव से, अपितु सम्पूर्ण सृष्टि से प्रेम का पुजारी समस्त अस्त्रों और शस्त्रों को विफल करते हुए ब्रह्माण्ड में प्रेम स्थापित कर हमेशा के लिए अमर हो जाता है। जब प्रेम में इतनी शक्ति है अर्थात प्रेम ब्रह्मास्त्र है, तो फिर क्यों न हम सम्पूर्ण जगत से प्रेम करें। आओ हम सम्पूर्ण सृष्टि को प्र्रेममय बनाकर सदा-सदा के लिए अमर हो जाएं।

Wednesday, January 8, 2020

आकांक्षाओं ने लांघी दहलीज

आकांक्षाएं, इच्छाएं, अभिलाषाएं, जरूरतें, ख्वाहिशें और अति आवश्यकताएं मानव जीवन के लिए अभिशाप बन गई हैं। जिन्होंने भारतीय संस्कृति, संस्कार, सम्मान और सेवा को दरकिनार करते हुए बनावटी और खोखली जिन्दगी को आत्मसात कर लिया है। आखिर जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं क्या हैं, कभी इप पर चिन्तन-मनन किया है? भारतीय सामाजिक परिवेश का तानावाना जिसे आदिकाल से ऋषि-मुनियों और तपस्वीयों ने अपने तपोबल, त्याग और अथक परिश्रम से बुना था, उसे आधुनिक भारत ने विखण्डित कर अपनी संस्कृति का घोर अपमान तो किया ही है, साथ ही पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर अपने कर्तव्य का हनन भी किया है। आदिकाल से विश्वगुरू रहे अखण्ड भारत को आज जागरुक करने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी है?
माता-पिता, बुजुर्गों के सम्मान, संस्कृति और संस्कारों की दुहाई सम्पूर्ण भारतवर्ष में देखी जा सकती है। आखिर क्यों, जिस सत पथ पर चलने की जरूरत थी, उसे नजरअंदाज करते हुए असत्य और अहम का रास्ता चुनकर न सिर्फ अपनी विरासत को धोखा दिया है, बल्कि सनातन संस्कृति के साथ अपने पूर्वजों, महान ऋषियों, तपस्वीयों का भी घोर अपमान किया? भारतीय संस्कृति हमारी धरोहर है। सेवा, समर्पण और सम्मान हमारा गुरूर है। जिसके बल पर हमने विश्वगुरू होने का अधिकार पाया था। खण्डित होती विरासत और विलुप्त होती धरोहर के जिम्मेदार केवल हम और आप हैं। इसका दोषारोपण किसी और पर नहीं किया जा सकता। परिवार का महत्व, सेवा का भाव, त्याग की परिकल्पना, दर्द का अनुभव और अपनों की अहमियत अब कहां रही है? अपने आप में संसार बसाकर रिश्तों की इति करने वाले आज के समाज ने सबकुछ खो दिया है।
अखण्ड विश्वगुरू भारत की गरिमामयी दहलीज को आकांक्षाओं ने बलिवेदी पर चढ़ा दिया है। अब फिर से विश्वगुरू होने का झूठा राग अलापते भारतवाषी इस पावन देश को तब तक विश्वगुरू नहीं बना सकते, जब तक प्राचीन भारत के स्वरूप को कायम नहीं कर पाते हैं। मानवीय संवेदनाओं को आत्मसात करने और सनातन संस्कृति को जीवन में उतारने की ललक ही भारत को उसका स्वरूप लौटा सकती है। कहावत है, ‘‘जब जागो, तब सवेरा’’ अभी वक्त है और सबकुछ हमारे हाथ में है। दुनिया ने हमारी विरासत, धरोहर, परम्पराओं और संस्कृति से बहुत कुछ हासिल कर अपने आपको सर्वशक्तिमान और सर्व सम्पनन बना लिया है। वहीं हमने दूसरों के आडम्बरों को अपने जीवन में स्थान देखकर अपनी मातृभूमि के साथ अन्याय कर डाला है। ‘‘कस्तूरी कुण्डल बसे, मृग ढूंडे बन माहि’’ अर्थात सर्वस्व हमारे पास होते हुए भी हम कल्पनाओं में जी रहे हैं। सम्पूर्ण और सर्वस्व हमारी संस्कृति में छिपा है। जिसके आत्मज्ञान से हम अपने खोए स्वरूप को पुनः अर्जित कर सकते हैं। आओ फिर से आधुनिक भारत को संवारने का दृण संकल्प लें और अपने कर्तव्य का पालन करें। जय हिन्द!

मजहब नहीं सिखाता....?

भारत देश की एकता और अखण्डता पर आज प्रश्न चिन्ह खड़े होना निराशाजनक ही नहीं अपितु बड़ी चिन्ता का विषय है। बात देश के वर्तमान हालात की है। चारो...